Friday, January 28, 2011

मध्यप्रदेश मे कृषि


समसामयिक अध्ययन केन्द्र ने " मध्यप्रदेश मे कृषि" विषय पर एक सेमिनार आयोजित किया.इसमे मध्यप्रदेश के कृषिमंत्री  डा. राम्कृष्ण कुसमरिया भी उपस्थित थे. देवी अहिल्या विश्व विद्यालय की  अर्थशास्त्र अध्ययनशाला के साथ सन्युक्त रुप से आयोजित इस सेमिनार की रिपोर्ट शीघ्र यहा देखी जा सकेगी.

Friday, January 7, 2011

स्पेक्ट्रम घोटाला और संसदीय गतिरोध




" जब आप 2001 के भाव मे आलू प्याज नही बिकवा सकते तो स्पेक्ट्रम कैसे बेच दिया "
"ये सिर्फ घोटाला नही बल्कि देश द्रोह है" - सुमित्रा महाजन


भारत के संसदीय इतिहास मे शायद ये पहला मौका है जब संसद का एक पूरा सत्र पक्ष- विपक्ष की राजनीति की बलि चढ गया. लाखो करोडो के घोटाले उजागर होने से हैरान जनता को ये उम्मीद थी कि कम से कम संसद मे इस बारे मे कुछ तो चर्चा होगी, मगर कुछ नही हुआ.

समसामयिक अध्ययन केन्द्र ने इस मुद्दे पर विपक्ष की भूमिका समझने हेतु पूर्व संचार मंत्री एवम सांसद सुमित्रा महाजन का एक व्याख्यान आयोजित किया.उनका ये उद्बोधन यहा पढा और सुना जा सकता है.


लोकसभा सत्र के शुरूआत के पूर्व लोकसभा की बिजनेस एडवायजरी कमेटी की मीटिंग होती है जिसमें सत्र के दौरान उठाए जाने वाले मुद्‌दों पर पक्ष-विपक्ष में सहमति बनती है तथा तद्‌नुसार ही सदन चलाया जाता है। हम लोकसभा को रोकना नहीं चाहते थे, हम जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका का निर्वाह करना चाहते थे इसलिए हमने सत्र की शुरूआत में ही चर्चा करना स्वीकार कर लिया। तय हुआ था कि पहले प्रतिपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज बोलेंगी, बाद में सदस्य बोलेंगे तथा अंत में सरकार की ओर से जवाब आएगा। लेकिन ज्योही माननीया सुषमाजी ने बोलना शुरू किया, सत्तापक्ष के लोग ही हंगामा मचाने लगे। उनकी नेता भी सदन में थी, पर वे मौन बैठी रहीं और सदस्यों को चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया। सुषमाजी ने भरसक कोशिश की लेकिन उन्हें एक शब्द भी उच्चारित नहीं करने दिया गया। अंततः सदन की बैठक स्थगित हो गई तो सभी विपक्षी दल के प्रमुख नेता एक साथ बैठे। भ्रष्टाचार के बड़े-बडे कारनामें एक-के-बाद एक बाहर आ रहे थे। सभी ने माना कि सरकार सदन में इस महत्वपूर्ण मसले पर चर्चा करने को तैयार नहीं है, ऐसे में विपक्ष को संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग करना चाहिए।

इसमें कोई गलत परंपरा अथवा अपमान वाली बात भी सरकार के लिए नहीं थी क्योंकि पूर्व में भी कई बार जेपीसी बन चुकी थी। यह बात भी सामने आई पीएसी इस मामले को देख रही है लेकिन सदस्यों का मानना था कि पीएसी की तुलना में जेपीसी के अधिकार ज्यादा है। चूंकि मामला अत्यंत गंभीर है, इसलिए इस विषय पर जेपीसी का गठन ही श्रेष्ठ रहेगा। अंततः पूरे विपक्ष ने आम सहमति से यह तय किया कि जेपीसी के गठन तक सदन में कुछ भी कामकाज नहीं होने दिया जाएगा। सरकार की हठधर्मिता से, पूरा शीतकालीन सत्र बर्बाद हो गया।

प्रथम दृष्टया यह आरोप किसी ने नहीं लगाया कि किसी व्यक्ति ने १ लाख ७६ हजार करोड रूपए सीधे खा लिए हैं। वास्तव में संचार मंत्री ए. राजा के गलत निर्णय से इस देश को १.७६ लाख करोड रू. के राजस्व का नुकसान पहुंचा है। संचार मंत्रालय में ए. राजा ने स्थिति ऐसी बना ली थी कि प्रधानमंत्री उनके कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर पाते थे।

स्पेक्ट्रम का मतलब एक स्पेस समझें जिसमें से हमारे बेतारी संदेश थ्रू होते हैं। यह स्पेक्ट्रम सरकार बेचती है, संचार मंत्रालय ने इसे बेचते हुए प्रथम आए प्रथम पाए की पॉलिसी रखी। इसमें भी कई फर्मो को कुछ ही मिनिटों में करोड़ों रूपए भरवाने का गेम खेलकर अतिरिक्त फेवर भी किया गया लेकिन यहॉं यह भी ध्यान में नहीं रखा कि जिस कंपनी को स्पेक्ट्रम दे रहे हैं वह इसका उपयोग करेगी भी कि नहीं। स्थिति यहॉं तक पहुंच गई कि कुछ रियल स्टेट में काम करने वाली कंपनियों को भी स्पेक्ट्रम बेच दिए गए। नियंत्रक एंव महा लेखापरीक्षक, केग ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति प्रकट की एवं अपनी रिपोर्ट में कहा कि मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम ओने पोने दाम में बेच दिए गए है इससे सरकार को १। ७६ लाख करोड रूपये की राजस्व हानि हुई है।
स्पेक्ट्रम बेचने की इस प्रक्रिया पर कानून मंत्रालय ने भी आपत्ति प्रकट की थी एवं संचार मंत्रालय को यह सुझाव दिया था कि इस विषय को मंत्री समूह (जीओएम) में ले आए अथवा संसद में रखें ताकि विक्रय प्रक्रिया तय की जा सके, लेकिन श्री ए. राजा ने इस सुझाव की भी अनदेखी की।
पूरे प्रकरण में श्री ए. राजा ने अपने बचाव में यह कहा कि उन्होंने राजग सरकार के समय लागू प्रक्रिया ही यथावत रखी है लेकिन वर्ष २००१ और २००८ के बीच संचार सेवाओं का अत्यधिक विस्तार हो चुका था ऐसे में मंत्रालय को यह मालूम था कि यदि नीलामी से स्पेक्ट्रम बेचा जाएगा तो सरकार को अधिक राजस्व की प्राप्ति होगी। श्रीमती महाजन ने यह कहा कि जब आप २००१ के भाव में आलू प्याज बाजार में नही बिकवा सकते हो तो स्पेक्ट्रम कैसे बेच दिया ?

बावजूद इसके संचार मंत्रालय ने पुरानी प्रक्रिया ही यथावत रखी जिससे सरकार को इतना भारी नुकसान उठाना पडा। यह क्षति मात्र सामान्य भूल नहीं अपितु आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में आती है और इससे भी अलग मेरा कहना तो यह है कि यह राष्ट्रद्रोह है। इतनी बडी राशि से देश के कई जरूरी काम निपटाए जा सकते थे, कई रूकी हुई योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया जा सकता था।